कई बार हम देखते हैं कि जब तक हम पूरी तरह से मोटिवेट नहीं करेंगे, तब तक कोई बड़ा काम नहीं कर पाएंगे। लेकिन सच्चाई ये है कि मोटिवेशन से ज्यादा पता है डर। हाँ, वही डर - जो अंदर से झकझोर दे कि "अगर मैंने ये नहीं पढ़ा, नहीं किया, तो आगे क्या होगा?"
असल में, जीवन में लक्ष्य तक चयन के लिए कुछ पुराने का डर होना जरूरी है। डर कि कहीं समय हाथ से न निकल जाए, डर कि सपने न रह जाए।, डर कि कोई और वही कर जाए जो आज मुझे करना था।
ये डर हमें हर दिन वापस लौटने पर मजबूर करता है। वही डर कहता है - "चल उठ, नहीं तो पछताएगा!"
और जब ये डर अंदर तक उतर जाए, तब मेहनत करना नहीं चाहिए, वो अपने आप होते हैं।
ये डर कमजोरी नहीं, एक ताकत है। एक ऐसा एहसास जो हमें याद आया कि अगर अब नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी। इसलिए जब भी मन करे तलने का, एक बार खुद से पूछो - "क्या मैं वो सब खोने के लिए तैयार हूं, जो मैं हो सकता था?"
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